माँ जो ढोती है अपने जिस्म पर... बच्चों का बोझ......अपनी मौत तक ...
माँ की जिस्म से चिपके बच्चें..... माँ के जिस्म को नोच- नोच खा रहे है.... और अपनी पेट की भूख को मिटा रहे है.... माँ दर्द सहती है ... फ़िर भी बोझ को लिए आगे बढती है.... अपने बच्चों को जिन्दा रखने के लिए......
जिस्म का मांस बच्चे नोचकर ख़त्म कर चुके है... माँ के हड्डियाँ दिखाई पड़ रही है... बच्चे अब बड़े हो चले है पर अभी भी बाकी है माँ की हड्डियों में जान.... चूसेंगें उन हड्डियों को जब तक है ... माँ में अभी बाकी जान...
अब बोझ असहनीय हो गया है... अब एक कदम भी चलना दुश्वार है... अब माँ की मौत करीब है... मगर बोझ अभी पीठ पर है... एक बच्चा पीठ से गिर गया है.... वापस उसे पीठ पर प्यार से उठा के रख रही है माँ.... अंतत: एक दिन बोझ लिए मर जाती है माँ..........
ये बिच्छू की फोटोग्राफ मैंने एक दिन बगीचे में ली थी। बिच्छू के बच्चे पैदा होते ही अपनी माँ की पीठ पर चिपक जाते है ... और उसका जिस्म ही उनका आहार होता है वे बच्चे तब तक चिपके रहते है जब तक बिच्छु जिन्दा रहता है , उसके जिस्म का सारा मांस जब ख़त्म हो जाता है और बिच्छू मर जाता है तब उसके पीठ से वे बच्चे उतर जाते है और स्वतंत्र होकर जीते है........ ऐसा मानना है .....
25 टिप्पणियाँ:
काश आदमी भी इससे सबक लेता यही तो परोक्ष में हो रहा है वाकई माँ की बड़ी दुर्गति है
gajab kee jaankari di aapne !
vismaykari !
sundar photo
la jawab caption story
बहुत खूब । बीच्छू के माध्यम से मौजूदा स्थियों का अच्छ चित्रण किया है।
कमाल है! एकदम विस्मयपूर्ण... हमारे लिए तो ये जानकारी बिल्कुल ही नवीन है.
स्वागत है आप का।
वैसे 'माँ' की अवधारणा इस कोटि के जीवों के लिए लागू नहीं होती। हमें 'मनुष्य' नहीं केवल "उन्नत जीव" होकर इसका विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा केंकड़ों के साथ भी घटित होता है। भोजपूरी में तो कहावत ही है, "केंकड़वा के बियान वोहि के खाला"।
जीवस्य जीव भोजनम।
चित्र निश्चय ही उत्कृष्ट हैं। इनके लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।
माँ के माँ होने का इससे बड़कर प्रमाण और कहाँ मिलेगा ...
गज़ब का चित्रण .., अभिनंदन .. मक्
adbhut!
abhinav!
adwiteeya!
मार्मिक चित्र के लिए बधाई
सौभाग्य से आपको दुर्लभ और अद्भुत छायांकन का अवसर मिला!
आपने ये चित्र हमें भी उपलब्ध कराए, इसके लिए हम आपके आभारी हैं!
यह सब देखकर आश्चर्यमिश्रित दुख होता है, पर प्रकृति की सर्वशक्तिशाली सत्ता को कौन चुनौती दे सकता है! कोई जीव अपने बच्चों को खा जाता है, तो किसी के बच्चे उसे ही चट कर जाते हैं!
आपके इस चित्रांकन ने मन को झकझोर दिया!
अरुण प्रकाश का कहना भी सही-सा प्रतीत होता है - "बिच्छू के बच्चे तो कुछ ही समय तक अपनी माँ को नोचते हैं और जल्दी ही उसे मारकर उसकी पीड़ा का अंत कर देते हैं, लेकिन मनुष्य के कुछ बच्चे तो उसे जीवन-भर नोचते हैं और उसका दर्द बढ़ाते ही रहते हैं!
हे भगवान् !
हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं ।
बहुत ही मजबूर माँ का सजीव चित्रण
हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं ।
अच्छी शुरूआत है,बधाई
श्याम सखा‘श्याम
http://gazalkbahane.blogspot.com/
कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/
दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम
आपका अंदाज़ अच्छा लगा
आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है
गार्गी
bahut hi shaandar chitran kiya hai apne maa ke balidaan kaa
शब्द और चित्र दोनो का सजीव चित्रण...विचलित कर गया... शुरुआत का नया अन्दाज़ आकर्षित करता है... ब्लॉगजगत मे आपका स्वागत है.
koi javab nahi is post ka. narayan narayan
सुस्वागतम्....
स्वागत है आप का।
अच्छी शुरूआत...
शुभकामनाएं......
ओह पहली बार जानी ये कहानी1 मां के लिये क्या कहें निश्बद्1
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