माँ के जिस्म पर जिन्दा है बच्चें

on शुक्रवार, 29 मई 2009

माँ जो ढोती है अपने जिस्म पर... बच्चों का बोझ......अपनी मौत तक ...

माँ की जिस्म से चिपके बच्चें..... माँ के जिस्म को नोच- नोच खा रहे है.... और अपनी पेट की भूख को मिटा रहे है.... माँ दर्द सहती है ... फ़िर भी बोझ को लिए आगे बढती है.... अपने बच्चों को जिन्दा रखने के लिए......


जिस्म का मांस बच्चे नोचकर ख़त्म कर चुके है... माँ के हड्डियाँ दिखाई पड़ रही है... बच्चे अब बड़े हो चले है पर अभी भी बाकी है माँ की हड्डियों में जान.... चूसेंगें उन हड्डियों को जब तक है ... माँ में अभी बाकी जान...

अब बोझ असहनीय हो गया है... अब एक कदम भी चलना दुश्वार है... अब माँ की मौत करीब है... मगर बोझ अभी पीठ पर है... एक बच्चा पीठ से गिर गया है.... वापस उसे पीठ पर प्यार से उठा के रख रही है माँ.... अंतत: एक दिन बोझ लिए मर जाती है माँ..........

ये बिच्छू की फोटोग्राफ मैंने एक दिन बगीचे में ली थी। बिच्छू के बच्चे पैदा होते ही अपनी माँ की पीठ पर चिपक जाते है ... और उसका जिस्म ही उनका आहार होता है वे बच्चे तब तक चिपके रहते है जब तक बिच्छु जिन्दा रहता है , उसके जिस्म का सारा मांस जब ख़त्म हो जाता है और बिच्छू मर जाता है तब उसके पीठ से वे बच्चे उतर जाते है और स्वतंत्र होकर जीते है........ ऐसा मानना है .....

25 टिप्पणियाँ:

arun prakash ने कहा…

काश आदमी भी इससे सबक लेता यही तो परोक्ष में हो रहा है वाकई माँ की बड़ी दुर्गति है

प्रकाश गोविंद ने कहा…

gajab kee jaankari di aapne !
vismaykari !

राजीव जैन ने कहा…

sundar photo

la jawab caption story

Yogendramani ने कहा…

बहुत खूब । बीच्छू के माध्यम से मौजूदा स्थियों का अच्छ चित्रण किया है।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" ने कहा…

कमाल है! एकदम विस्मयपूर्ण... हमारे लिए तो ये जानकारी बिल्कुल ही नवीन है.

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
गिरिजेश राव, Girijesh Rao ने कहा…

स्वागत है आप का।

वैसे 'माँ' की अवधारणा इस कोटि के जीवों के लिए लागू नहीं होती। हमें 'मनुष्य' नहीं केवल "उन्नत जीव" होकर इसका विश्लेषण करना चाहिए। ऐसा केंकड़ों के साथ भी घटित होता है। भोजपूरी में तो कहावत ही है, "केंकड़वा के बियान वोहि के खाला"।
जीवस्य जीव भोजनम।

चित्र निश्चय ही उत्कृष्ट हैं। इनके लिए बहुत बहुत धन्यवाद ।

mastkalandr ने कहा…

माँ के माँ होने का इससे बड़कर प्रमाण और कहाँ मिलेगा ...
गज़ब का चित्रण .., अभिनंदन .. मक्

Unknown ने कहा…

adbhut!
abhinav!
adwiteeya!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद ने कहा…

मार्मिक चित्र के लिए बधाई

रावेंद्रकुमार रवि ने कहा…

सौभाग्य से आपको दुर्लभ और अद्भुत छायांकन का अवसर मिला!
आपने ये चित्र हमें भी उपलब्ध कराए, इसके लिए हम आपके आभारी हैं!
यह सब देखकर आश्चर्यमिश्रित दुख होता है, पर प्रकृति की सर्वशक्तिशाली सत्ता को कौन चुनौती दे सकता है! कोई जीव अपने बच्चों को खा जाता है, तो किसी के बच्चे उसे ही चट कर जाते हैं!
आपके इस चित्रांकन ने मन को झकझोर दिया!
अरुण प्रकाश का कहना भी सही-सा प्रतीत होता है - "बिच्छू के बच्चे तो कुछ ही समय तक अपनी माँ को नोचते हैं और जल्दी ही उसे मारकर उसकी पीड़ा का अंत कर देते हैं, लेकिन मनुष्य के कुछ बच्चे तो उसे जीवन-भर नोचते हैं और उसका दर्द बढ़ाते ही रहते हैं!

शेफाली पाण्डे ने कहा…

हे भगवान् !

anil ने कहा…

हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं ।

dr amit jain ने कहा…

बहुत ही मजबूर माँ का सजीव चित्रण

Akhileshwar Pandey ने कहा…

हिंदी ब्लॉगिंग जगत में आपका स्वागत है. हमारी शुभ कामनाएं आपके साथ हैं ।

gazalkbahane ने कहा…

अच्छी शुरूआत है,बधाई
श्याम सखा‘श्याम

http://gazalkbahane.blogspot.com/
कम से कम दो गज़ल [वज्न सहित] हर सप्ताह
http:/katha-kavita.blogspot.com/
दो छंद मुक्त कविता हर सप्ताह कभी-कभी लघु-कथा या कथा का छौंक भी मिलेगा
सस्नेह
श्यामसखा‘श्याम

इस्लामिक वेबदुनिया ने कहा…

आपका अंदाज़ अच्छा लगा

उम्मीद ने कहा…

आप की रचना प्रशंसा के योग्य है . लिखते रहिये
चिटठा जगत मैं आप का स्वागत है

गार्गी

vinay sehra ने कहा…

bahut hi shaandar chitran kiya hai apne maa ke balidaan kaa

मीनाक्षी ने कहा…

शब्द और चित्र दोनो का सजीव चित्रण...विचलित कर गया... शुरुआत का नया अन्दाज़ आकर्षित करता है... ब्लॉगजगत मे आपका स्वागत है.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

koi javab nahi is post ka. narayan narayan

समय ने कहा…

सुस्वागतम्....

राजेंद्र माहेश्वरी ने कहा…

स्वागत है आप का।

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

अच्छी शुरूआत...

शुभकामनाएं......

निर्मला कपिला ने कहा…

ओह पहली बार जानी ये कहानी1 मां के लिये क्या कहें निश्बद्1

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