नदी...नाव.. नाविक...और नाव बनने वालों के अस्तित्व का संकट............
हैया... रे ... हैया......हैया....रे..हैया.....हैया....रे....हैया.... सदियों से ये बोल नाव और नाविक को अपनी मंजिल की तरफ़ बढ़ते रहने का साह्स और हौसला देती रही है........
नदी... नाव... नाविक... और नाव बनाने वाले..... इनके बीच सदियों से..... एक अटूट सम्बंध रहा है........ मगर आज ये ताना - बाना बिखर गया है .... आहिस्ता.... आहिस्ता ....टूट गया है .......
अब तो नदियों में..... न पानी है ... न नाव..... है तो सिर्फ़ तथाकथित विकास के नाम पर..... बड़े.... बड़े... बाँध... आज नाव बनाने और चलाने वाले परिवार... शहर में रिक्शा चला रहे है .....जिनके बनाई कृतियों ने.... समंदर को नापा है... आज उनके वंशज ....रिक्शो से सड़क नाप रहे है......
हैया... रे ... हैया.....आज ये गीतों के बोल.... शायद खत्म हो चुके है........डूबते सूरज की तरह... डूब रहा है ..नाव...नाविक...और नाव बनाने वालों का अस्तित्व........
हम आने वाली पीढ़ियों को...... को सुनायेंगें शायद किस्सा.... कि कभी बहती थी नदी.... उसमे चलते थे नाव... और नदी के किनारे बसते थे बनाने वाले नाव.......और दिखायेंगे उन्हें ये पेंटिंग ताकि उन्हें... मिल सके... कल्पनाओं को रंग... नदी... नाव ..नाविक.... और नाव बनाने वालों की.......
हैया... रे ... हैया......हैया....रे..हैया.....हैया....रे....हैया.... सदियों से ये बोल नाव और नाविक को अपनी मंजिल की तरफ़ बढ़ते रहने का साह्स और हौसला देती रही है........
नदी... नाव... नाविक... और नाव बनाने वाले..... इनके बीच सदियों से..... एक अटूट सम्बंध रहा है........ मगर आज ये ताना - बाना बिखर गया है .... आहिस्ता.... आहिस्ता ....टूट गया है .......
अब तो नदियों में..... न पानी है ... न नाव..... है तो सिर्फ़ तथाकथित विकास के नाम पर..... बड़े.... बड़े... बाँध... आज नाव बनाने और चलाने वाले परिवार... शहर में रिक्शा चला रहे है .....जिनके बनाई कृतियों ने.... समंदर को नापा है... आज उनके वंशज ....रिक्शो से सड़क नाप रहे है......
हैया... रे ... हैया.....आज ये गीतों के बोल.... शायद खत्म हो चुके है........डूबते सूरज की तरह... डूब रहा है ..नाव...नाविक...और नाव बनाने वालों का अस्तित्व........
हम आने वाली पीढ़ियों को...... को सुनायेंगें शायद किस्सा.... कि कभी बहती थी नदी.... उसमे चलते थे नाव... और नदी के किनारे बसते थे बनाने वाले नाव.......और दिखायेंगे उन्हें ये पेंटिंग ताकि उन्हें... मिल सके... कल्पनाओं को रंग... नदी... नाव ..नाविक.... और नाव बनाने वालों की.......
2 टिप्पणियाँ:
खूबसूरत प्रस्तुति बधाई
श्याम
कितना सही कहा आपने ..! हमने पर्यावरण के साथ तो खेल खेला है ,क़ुदरत हमें माफ़ नही करेगी ..हम हमारी जड़ों से बिछड़ते जा रहे हैं ...जिसे नाम 'प्रगती ' दिया जाता है ...होती वो अधोगती है ..जैसे कलही की बात है ..एक बच्चे ने पूछा ,' ये आँगन क्या होता है ?'
किसीभी बांगला उपन्यास को पढ़ें ,तो उसमे नदी का वर्णन , अस्तित्व होता ही होता है ..नदी किनारों से मनुष्य जीवन की बस्तियाँ शुरू हुई ....उन्हीं नदियों को हमने निर्दयतासे नष्ट किया ..
आपकी तस्वीरें सच में बोलतीं हैं ...sketch भी बडाही सुंदर है ..आपका 'अनुसरण' करना चाहती हूँ...
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